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गंगा मैया

जून 9, 2014

dhaaraa

गंगोत्री ग्लेशियर से निकली तीनों धाराएँ अलकनंदा, मंदाकिनी और भागीरथी हिमालय की गोद छोड़कर नीचे धाती हैं तो छोटी-बड़ी कई नदियों से प्रयाग बनाती हुई गंगा बनती है जो बंगाल की खाड़ी में सिला जाती है।

जल लाल रंग

जल लाल रंग

गंगा गंगा बनने से पहले ही उसमें बहुत गंदगी डाल दी जाती है। अलकनंदा के किनारे बद्रीनाथ धाम से ही गंदगी भरनी शुरु हो जाती है। गर्म पानी के कुंडों की गंदगी का निकास अलकनंदा में ही है। लाखों लोग नहाते है जिनका मैला पानी निर्मल नदी का रंग ही बदल देता है। नहाए हुओं का गंदा पानी उसकी शीतलता को गुनगुना कर देता है। जितने होटल रेस्ट्रॉं है सब की नालियों का निकास अलकनंदा में ही है। क्या पानी की बोतलें, क्या पोलीथीन के थैले क्या प्लास्टिक के गिलास (इत्यादि ) सबका (प्रयोग करने के बाद ) अंबार, किसी भी शिला से टकराती नदी में देखा जा सकता है । ठीक यही हाल मंदाकिनी का है। गंगोत्री की तो बात ही क्या! वहाँ लोग जितनी आस्था से जाते हैं उतनी ही अपनी अनास्था का परिचय देते हैं। जिसको पूजते हैं उसी में कूड़ा भी बहा देते हैं।
तीर्थ यात्रियों के अलावा पंडे-पुजारी भी समझदारी का परिचय नहीं देते। वे गंदगी बढ़ाने में खुद आगे रहते हैं। उन्हें तो चार महीनों में अपनी साल भर की कमाई करनी होती है। वे तो अधिक दान देने वाले को और गंदगी करने की शह देते हैं। यजमान को कठिनाई न हो। ’गंगोत्री’ में हमने रावलजी(पुजारी) से यह पूछा तो जबाब देने की बजाय उल्टा हमसे पूछने लगे आप क्या नेता हैं जो ऐसे पूछ रहीं हैं? पर हम कहाँ मानने वाले थे हमने उनकी ’आगंतुक-विचार’ पुस्तिका में अपने सुझाव लिख डाले। वह थोड़े चिड़े से भी हो गए और कहने लगे भक्तों को क्या मना करें! बेचारे इतनी दूर से आते हैं। सरकार ने तो कानून बना रखा है पर अफसर लोग भक्तों पर तरस खाकर कड़ाई नहीं बरतते हैं।

भागीरथी के किनारे

भागीरथी के किनारे

 

यही हाल सभी स्थानों पर है जहाँ-जहाँ भी वह बहती है। सरकार ने अपनी कोशिशें की हैं यह अलग बात है उनका क्रियात्मक रुप काग़ज़ी ज़्यादा और प्रयोगात्मक कम रहा। हमें सरकारों को कोसने की आदत है ठीक वैसे ही जैसे कोई क़सूरवार अपनी ग़लती से ध्यान हटाने के लिए किसी और की ओर ध्यान बटा दें। गंगाजी का यह हाल हमने बनाया है। चाहे अज्ञानता हो या उदासीनता और या फिर स्वार्थ सभी कारणो से हम ही जिम्मेदार हैं इस हालत के। जब हम क़सूरवार है तो या तो हम अपनी ग़लती सुधार लें या फिर सज़ा के लिए तैयार रहें। बड़ी-बड़ी योजनाओं से ज़्यादा आम श्रद्धालु में जागरुकता की आवश्यकता है। सरकार से भी कार्यान्वयन कराने के लिए प्रजा को स्वयं भी सजग होना होगा।
गंगा के किनारे से अनधिकृत निर्माण को सबसे पहले हटाना चाहिए। उदगम से लेकर विलय तक सबसे अधिक इन निर्माणों ने गंगा को गदला किया है। गंगा का मान आरती और फूलों से नहीं बल्कि उसकी स्वच्छता को लाने में है तभी यह पापमोचिनी बन पाएगी।
गंगा किनारे तीर्थों पर केवल मिट्टी के बर्तनों का प्रयोग होना चाहिए न कि प्लास्टिक के सामान का। नियमों को कड़ाई से पालन करना और कराना चाहिए। गंगा में विसर्जन पर पूर्ण रोक लगानी चाहिए। सरकार से ज़्यादा इन बातों की जागरुकता फैलाने काम हर सजग नागरिक का है। पढ़े-लिखे लोगों को स्वयं तो गंदगी करनी ही नहीं चाहिए साथ ही साथ औरों को भी न करने के लिए मजबूर करना चाहिए। आज जब दशा इतनी सोचनीय है तब तो हम सब को जागकर गंगा जी को बचाना चाहिए न जाने उसने कितनों को तारा है। एक राजा भगीरथ थे जो अपनी मेहनत से सेवा से गंगा को मैदानों तक लाए एक हम हैं कि उसको ठीक से रख भी नहीं पाए हैं। आज से ही गंगा की सफाई में सहयोग की प्रतिज्ञा करलें तो क्या स्वच्छता संभव नहीं है? गंगा ही क्यों हमें अपनी सभी नदियों की रक्षा अपने मन से करनी चाहिए वरना हम अपनी प्राकृतिक विरासत आने वाली पीढ़ियों को देखने तक को न छोड़ पाएँगे।

गंगा के विषय में हमने पहले भी लिखा था। कार्तिक पूर्णिमा पर गंगा का नाम लेकर अनेक मनुज अपने पाप धोने का भ्रम पालेंगे। पर इसमें कोई शक नहीं कि अपना मैल अवश्य ही घोल डालेंगे।