जब टूटी सड़कें बनने लगें,
जब नेता परेशानी सुनने लगें,
जब हर दुकान और दफ़्तर में,
ज़ोर-ज़ोर से बहसें होने लगें,
तो समझो चुनाव समीप है।
जब छुटभैयों की बनने लगे,
झकाझक सफ़ेद दिखने लगें,
जब हर गली और मुहल्ले में,
उनकी मुस्कान बिखरने लगे,
तो समझो चुनाव समीप है।
जब नेता सुख-दुख में आने लगें,
अपनी संवेदनाएँ भी जताने लगें,
जब हर मंदिर और मदिरालय में,
भाषण और सभाएँ होने लगें,
तो समझो चुनाव समीप हैं।
जब दबे मुद्दों की बातें होने लगें,
ऊँचे-ऊँचे से वायदे होने लगें,
जब हर देसी-विदेसी मीडिया में,
नेता-नीति के इन्टरव्यू आने लगें,
तो समझो चुनाव समीप हैं।
जब नेता क़द्दावर लगने लगें,
राजनीतिक पार्टी सजने लगें,
जब पार्टी-नेता या नेता-पार्टी में,
यह समझ ही न आने लगे,
तो समझो चुनाव समीप हैं।
जब सरकारी-कर्मी हंसने-रोने लगें,
एलेक्शन ड्यूटी की बात होने लगें,
जब घर-बाहर सभी जगहों में,
मेरी-ड्यूटी,मेरी-ड्यूटी गाने लगें,
तो समझो चुनाव समीप हैं।