Archive for the ‘कहानी/कथा’ Category

वो डोलत रस आपने उनके फाटत अंग!

जुलाई 5, 2009


यौं रहीम कैसे निभै, बेरे-केर कौ संग।
वो डोलत रस आपनै, उनके फाटत अंग॥
साहित्य अगर बेर का वृक्ष है तो ब्लॉग केले का वृक्ष।
……………………………………………………………………………………

मौलिक और स्वाधीन व्यक्तित्व

लाली अपने माता-पिता की इकलौती संतान है। लाली के पिता चाय का खोका चलाते थे। पर शराब और गुटके की लत के चलते क्षय-रोग से क्षय हो गए। अब घर में रह गयी लाली और उसकी मम्मी। लाली छठी में पढ़ती थी। उसकी माँ अनपढ़, ठेठ गाँव की शर्मीली और घुंघट निकालने वाली थी। लोगों को पता चला तो उसके घर शोक प्रकट करने जाने लगे। कुछ आर्थिक मदद और दान भी दे गए।
लाली की माँ हर तरफ़ से परेशान थी। घर का खर्च कैसे चलाए? बाहर जाकर किसी से कभी बात नहीं की। पति जाने ही नहीं देता था। पर कुछ लोगों ने उसका हौंसला बढ़ाया और उसे उस चाय की दुकान चलाने में मदद की। साल-छः महीने में वह अपनी दुकान चलाने लग गयी।
लाली बहुत सुंदर और एक्टिव। भाग-भागकर काम करती। सदा मुस्कराती रहती है।
पर अपने को समृद्ध और चतुर समझने वाली कुछ स्त्रियाँ लाली में विशेष ध्यान देने लगीं। वह उसे अपने बच्चों के उतरे कपड़े दे देतीं तो कभी खाने की कोई चीज़ जो उसके लिए दुर्लभ थी। लाली छोटी बच्ची थी वह उनके प्रभाव में आगयी। वे स्त्रियाँ लाली की बहुत तरीफ़ करतीं। लाली का मन उनके पास ही लगने लगा। वह अपने घर से उनके घर भाग जाती। उसका मन पढ़ाई में न लगकर उनके कामों में ज़्यादा लगता।
किसी अध्यापिका के पूछने पर भोली लाली ने सब बात बता दी। अध्यापिका का माथा ठनका। उसने लाली की माँ को तुरंत बुलाया और समझाया कि वे स्त्रियाँ लाली को लालच देकर घर में नौकरानी बनाना चाहती हैं। जब यह पढ़ेगी नहीं तो स्वयं ही कहीं काम करने लगेगी।
लाली की माँ समझ गयी। उसने अपना घर बदल दिया और लाली को भी सख्ती से समझा दिया कि पढ़ाई करनी है न कि लालच। अब लाली दसवीं में आगयी है और मन लगाकर पढ़ रही है।
न जाने कितनी लालियों पर चाहे वे किसी उम्र की क्यों न हों लोगों को स्वार्थवश उनका स्वतंत्र व्यक्तित्व मारने में मज़ा आता है।