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व्रत

अक्टूबर 5, 2009

व्रत का अर्थ – कोई प्रण या प्रतिज्ञा लेना है। शपथ के आसपास का ही होता है व्रत।
कोई भी व्रत लेना बहुत आसान है पर उसका पूर्ण निर्वाह असंभव तो नहीं पर बहुत कठिन होता है। मन बार-बार चंचलता दिखाता है पर विवेक और बुद्धि व्रत पूर्ण करने की ओर ले जाते हैं।
व्रत लेने से पहले हमें अपनी दृढ़ इच्छा-शक्ति की परीक्षा लेनी चाहिए ताकि हम अपने आप को आंक सके कि हम व्रत पूर्ण करने में समर्थ भी हैं कि नहीं। व्रत कभी भी अहम तुष्टि के लिए नहीं होना चाहिए।
व्रत हमारे अंदर धैर्य, सहनशीलता और दृढ़ता का गुण भरने में सहायक है। जब हम
कोई व्रत लेते हैं तो हमें पता होता है कि किस-किस रुप में हमे अडिग रहना है, कौन-कौन से कार्य करने हैं और कौन-कौन से कार्य छोड़ने हैं।
मन अगर नियंत्रण में है, इच्छाएँ भी नियंत्रण में हैं तो व्रत पूर्ण हो जाता है। पर मन अगर भटक जाए, इच्छा भी हिलने लगे और लालच, स्वार्थ जैसे भाव ऊपर उठने लगें तो व्रत हो ही नहीं सकता।
कोई भी कठिन व्रत लेने से पहले सरल और छोटे व्रत लेकर हम अपनी दृढ़-संकल्पना को बढ़ा सकते है और कैसा भी कठिन व्रत क्यों न हो उसे पूर्ण कर सकते हैं। हाँ रोगी कभी-कभी व्रत तोड़ देता है। क्योंकि स्वस्थ शरीर ही स्वस्थ सोच पाता है पर परहेज भी तो व्रत है। भोगी अगर व्रत करे तो व्यसनों से निजात पा सकता है।

आजकल व्रत शब्द प्रायः खाना न खाने और फलाहार करने जैसे संकल्पों के लिए प्रयोग होता है। यह व्रत भी हमारे लिए बहुत लाभप्रद हैं। अपनी प्रिय खाने की वस्तु का त्याग का व्रत अगर एक दिन करते हैं तो स्वादेन्द्री नियंत्रण में रहती है। हमें अपनी शारीरिक क्षमता का पता चलता है। इसके अतिरिक्त वात-पित्त और कफ़ सभी नियंत्रण में आ जाते हैं। पर हमने इन्हें धर्म का रुप देकर इनकी मन और शरीर दोनो के लिए होने वाले लाभ को पीछे कर दिया है।
भोजन-संपन्न जो खाने के लिए ही जी रहे हैं अगर जीने के लिए खाने के तरसने वालों को अगर थोड़ा सा भी देने का व्रत भी लेलें तो कोई भूखों न मरे।
सभी धर्मों में व्रत और प्रतिज्ञा का महत्त्व है। संपूर्ण जीवन में इनका महत्व है। मनोबल बढ़ाना हो तो नेक व्रत अवश्य लेना चाहिए। मनोबल बढ़ाकर हम शरीर और मन की हर बुराई को दूर कर सकते हैं। निश्चय-बुद्धि ही व्रत है।

”व्यवसायात्मिका बुद्धिरेकेह कुरुनंदन।
बहुशाखा ह्यनन्ताश्च बुद्धयोSव्यवसायिनाम॥”

कौन कहता है कि व्रत के फायदे नहीं हैं। सच तो है कि यह शारीरिक और मानसिक यंत्रणाओं से बाहर निकलने और निकालने का एक उपाय है।