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जीवन की नदी गहरी है

अप्रैल 10, 2006

जीवन की नदी गहरी है,
जो ना कभी ठहरी है,
लहर लहर बहती है,
सुख-दुख के किनारे छूती रहती है।
जीविका की नाव चलती है,
परिश्रम से दौड़ती है।
थकते ही रुकनी शुरु हो जाती है,
लहरों के थपेड़ों से थोड़ा ही चल पाती है।
यदि चाहते हो फांट का पार पाना,
अथाह जल को तैर जाना,
तो नदी से ही तैरना सीखना पडे़गा,
उसकी लहरों की तरह किनारों से दूर जाना पडेगा।
जिंदगी का असली मज़ा भी बीच नदी में ही आता है,
किनारे पर बैठे रहने से तो मन जीते जी मर जाता है।