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जाने वाली है, जा रही है।

फ़रवरी 16, 2008

कांजी

सर्दी कभी हवाई जहाज या सुपर फ़ास्ट ट्रेन में सफर नहीं करती है वह जब भी कहीं आती जाती है तो रथरब्बा, बैलगाड़ी या बुग्गी में ही बैठकर जानाआना पसंद करती है। आजकल में वह बुग्गी में बैठने ही वाली है। मुँह तो उधर कर ही लिया है। अब इस बार क्या वापिस आएगी! चलो काजीं बनाकर पीते हैं।

कांजी उत्तर भारत का बसंत के मौसम का सर्वाधिक लोकप्रिय पेय है। बनाने में बहुत आसान और पीने में मज़ेदार ।

कांजी कई रुपों में पी जाती है पर बनाने का ढंग एक सा ही है।

कांजी का पानी तैयार करने के लिए पानी के अतिरिक्त राई, नमक और लाल मिर्च की आवश्यकता होती है। इसके अलावा आधा किलो धुली और छिली हुई काली या लाल गाजर के टुकड़े भी चाहिए। इसको बनाने के लिए ( आप अपनी घर-जरुरत के हिसाब से) चार लीटर पानी को उबाल लें और ठंडा होने रख दें। लगभग पचास ग्राम राई के दानों को पाऊडर करलें। जब पानी ठंडा हो जाए तो उसे किसी चौड़े मुंह वाले ढ़क्कनदार बर्तन में पलट लें। उसमें स्वादानुसार नमक,मिर्चपाऊडर और पिसी हुई राई मिलादे बड़े चम्मच से हिलाकर नमक घोल दें। अब उस नमकीन घोल में कटी हुई गाजर डाल दें। बर्तन का मुंह बंद करके उसे चार पाँच दिन के लिए धूप में रख दें। पाँच दिन बाद कांजी पीने के लिए तैयार है। सर्व करें और पियें। गाजर की जगह चुकंदर या मूली भी डाले जाते हैं।

लालगाजर की कांजी में धुली मूँग की दाल के मगोड़े (पकौड़े) डालकर भी खाए जाते हैं। जिन्हें कांजी के वड़े/मगौड़े कहा जाता है।

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