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अहल्या के प्रश्न(हाइकू-रामायण)

मई 24, 2008

राम-लखन,

ऋषि-अनुसरण,

घूमें वनन॥

कुटी निहार,

औ’ आश्रम विशाल।

क्यूँ सुनसान?

ऋषि उवाच-

ऋषिमहान,

थे ”गौतम’ सुनाम।

यहाँ निवास॥

पत्नी अहल्या,

तन्वंगी सी यौवना,

अतृप्त मना॥

प्रवेश किया,

इंद्र ने ऋषि भेष ।

देख अकेली॥

प्रणय जागा,

सब सम्मान भागा।

तृप्त-इंद्रिय।

गौतम लख,

देवेंद्र उड़ चला।

अहल्या सिला!!!

शोषित नारी,

क्रोध-शिकार भारी।

बलात ताड़ी॥

हो मुक्त अब,

देदो चरण-रज,

राघव प्यारे!

अहल्या कथन-

अच्छा राम हो?

नारी-पाप नाशक!

उद्धारक हो!

क्या पाप मेरा?

क्यों सिला सम किया?

पूछ तो ज़रा?

पुरुषोत्तम!

क्या हो मानवोत्तम?

बोलो हे राम!

मैं छली गयी,

पीड़ा से भरी गयी,

शापित भयी।

दुत्कार मिली,

तिरस्कारित हुई,

त्याजित हुई॥

वो भी पापी है,

क्या अभिशापित है?

ये न्याय तेरा?

क्या है मर्यादा?

नर-नारी क़ायदा?

है अंतर क्यों?

हे दीनबंधु!

दीनन रखवारे!

धींगों से हारे?

दण्ड मुझे क्यों?

सिल इंद्र नहीं क्यूँ?

हुआ खेद यूँ!

आभारी मैं हूँ,

शाप-मुक्त नारी हूँ,

क्या न्याय हुआ?

चुप क्यों राम?

दीनानाथ महान!

हे भगवान!

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