६ अप्रैल २००६ से लिखकर मन को संतुष्ट करने वाले हमारे ब्लॉग-लेखन को भी कोई अपने ब्लॉग पर छापेगा हमने सपना भी न देखा। हम तो अपनी अलोकप्रियता से आश्वस्त थे कि हमारी लिखाई की ओर कोई देखेगा भी नहीं पर हमसे न पूछा न गछा। बस छाप दिया। इतना साफ़ कॉपीराइट का निशान भी बेऔकात हो गया।
हमारी कहानी ”आवारा-औरत” दो ब्लॉगस पर-
१. http://auratnama.blogspot.com/2008/09/blog-post.html
२.http://eganesh.blogspot.com/2009/02/by-prem-lata.html
प्रकाशित हैं। औरतनामे पर हमने मिटाने के लिए लिखा भी है फिर भी कुछ नहीं। आश्चर्य तो यह है कि ओरिजनल जगह पर तो सिर्फ़ तीन नए लोगों की टिप्पणियाँ हैं और उठाई-गिरी पर कहीं ज़्यादा कमेंट्स हैं। क्या कहें हंसी और गुस्सा दोनों का कचूमर हो गया है।