मध्य-महेश्वर (द्वितीय केदार )

22  जून से 27 जून तक उत्तराखंड में  यात्रा पर थी.  दिल्ली से हरिद्वार  जाकर टैक्सी की और सीधे रुद्रप्रयाग जाकर रात्रि विश्राम किया।  हमने  चारधाम की यात्रा तो कई बार की है परन्तु ऊखीमठ पहली बार जा रही थी ।  अगले दिन सुबह ही नहा कर निकल गए रास्ते में चाय पी और नाश्ता किया और सीधे पहुंचे ऊखीमठ।  रास्ते में प्रकृति  का अलौकिक सौंदर्य इस तरह लुभा रहा था कि मानो स्वर्ग की  यात्रा पर हों। ऊखीमठ

में केदारनाथ की शीतकालीन पूजा स्थली के दर्शन किए और आगे बढ़ गए।

ऊंचाई के  बढ़ते रास्ते मध्य-गंगा नदी के किनारे पहाड़ों को लांघते, छोटे छोटे गांव मनसूना और  उनियाना पार  करके दोपहर तक एक और बहुत छोटे गांव रांसी पहुंच गए।  टैक्सी वहीं तक जाती। वहां एक ही विश्राम घर था जिसमे हमने डेरा डाल  लिया यानि रुक गए  🙂

सभी थके  थे और बड़ी भूख लगरही थी होटल मालिक अशोक अति विनम्र था उसने जल्दी से चाय सर्व की और सामान ऊपर कमरों में पंहुचा दिया। हम हाथ मुँह धोकर पुनः नीचे आगए और ताज़ा  गर्म खाना खाया। खाना खाने के बाद  अगले दिन सुबह करने वाली 17 किमी चढ़ाई  के विषय में  चर्चा की और घोड़े के बारे में पूछा तो अशोक ने घोड़े वाले वहीं बुला दिए।  उनसे अगले दिन सुबह पांच बजे घोड़े लेकर आने  की कहकर हम आराम करने अपने कमरों में चले गए , इधर मौसम  बहुत ही अच्छा हो गया बादल घिरे और कुछ देर बरस  कर आकाश पुनः सूर्य को सौंप कर गायब हो गए।

हम सभी उठकर बैलकनि में पड़ी कुर्सियों पर बैठकर सामने फैले सुरम्य दृश्य पैदा कर रहे पहाड़ों को देखते हुए चाय की चुस्कियां भरते हुए  पहाड़ी जीवन को निहारते रहे।   तभी अशोक ने बताया की ऊपर गांव में राकेश्वरी देवी मंदिर है.

एक दो किमी चलकर दर्शन किए जा सकते हैं।  हम तैयार होकर थोड़ी ठण्ड होने के कारण गर्म कपड़े  पहनकर मंदिर की और चल पड़े।

असल में  होटल रांसी गांव के मुहाने पर था अब हम गांव में प्रवेश कर रहे थे।  थोड़ी सी ऊँचाई  पर जाकर ही राकेश्वरी देवी मंदिर था हमने दर्शन किए और गांव में टहलते रहे, वहाँ बच्चों और लोगो  से बात की, उनका रहन-सहन और खेत देखे। बच्चे तो हमेशा आह्लादनी शक्ति होते हैं सो भोले भाले लाल लाल गाल वाले नन्हे नन्हें  फरिश्तों ने हमे घेर लिया हमने भी उन्हें प्यार दुलार किया कुछ उपहार भी दिए और उनकी मुस्कराहट और पवित्रता को मन में बसा कर उनके पास से वापस होटल की और चल पड़े।  लौटकर अशोक को जल्दी भोजन तैयार करने की कहकर पुनः बैलकनी में जाकर बैठ गए जब भोजन बन गया तो नीचे आये और सुस्वादु भोजन का आनंद लिया और थोड़ी देर टहलकर पुनः कमरों में जाकर अगले दिन सुबह जल्दी उठने की कह कर गहरी नींद सो गए।

सुबह साढ़े तीन बजे तक सभी उठ गए और पांच बजे तक नहाकर तैयार होकर, चाय पीकर और अपने-अपने रक्सक बैग लेकर गाड़ी में बैठकर लगभग दो किमी दूर उस स्थान पर पहुंचे जहां से घोड़े पर जाना था।

कुछ देर में ही घोड़ेवाले आगए और हम सब घुड़सवार 🙂 आगे निकल लिए।  कभी उतराई कभी चढ़ाई करते मध्य गंगा के किनारे-किनारे प्रकृति की गोद  में उसके सौंदर्य का न केवल दर्शन करते बल्कि उसे  महसूस करते हुए बंतोली गांव पहुंचे जहाँ हमने और घोड़े वालों  ने आलू के पराठे खाए और चाय पी।  घोड़ों ने भी घास चरी और गुड़ खाया।

कुछ देर बाद फिर आगे बढ़े और अपर बंतोली और  गोंडार गांव में से होते हुए नदी किनारे ऊंचाई पर चढ़ते हुए साथ चलती और बढ़ती हरीहरी और हिमाच्छादित ऊँची पर्वत मालाओं के आगोश में घने जंगलो को पार  करते हुए 3472 मीटर की ऊंचाई पर द्वितीय केदार मध्यमहेश्वर मंदिर के निकट पहुंचे तो जय भोले की गूँज से वातावरण गुंजायमान हो गया।  मन फूला न समा  रहा था।

घोड़े से उतरकर सीधे मंदिर प्रांगण में पहुंचे पर कपाट बंद देख थोड़ी निराशा हुई क्योंकि दर्शन का मोह ही तो यहाँ तक लाया था।  पुजारी जी से बहुत अनुनय-विनय करके बाहरी द्वार खुलवाकर बाहर से ही एक झलक देखकर मंदिर की धर्मशाला में कमरे लेकर सामान रखा चाय पी और बाहर आकर देखा तो आकाश बादलों से घिरा था  और बारिश हो रही थी हम कमरे के आगे बने छोटे से छज्जे में बैठकर वहां के नैसर्गिक सौंदर्य का पान करने लगे।  कुछ देर में बारिश रुक गयी तो हम पुनः नीचे आकर प्रकृति को अपने कैमरे में उतारने लगे।

शाम को भोलेनाथ की  आरती के दर्शन किए और चूल्हे की बनी स्वादिष्ट रोटी का आनंद लिया और सो गए।

mad maheshwar

अगले दिन प्रातः उठकर लगभग तीन किमी की पैदल चढ़ाई हांफते हुए 🙂 करके पहुंचे बूढ़ा महेश्वर जहा से चौखम्बा पीक बिलकुल नजदीक और स्पष्ट दृष्टिगोचर होती है इसके साथ ही केदारकाठा और नीलकंठ चोटी अत्यंत मनोरम दृश्य बनाती हैं।

कुछ देर वहां रुककर हम नीचे उतरे, अब साँस काम फूल रही थी आसानी से आगए।  स्नान इत्यादि से निपटकर भगवा न का रुद्राभिषेक कराया उपासना की और प्रसाद ग्रहण किया।

 

अब भोजन ग्रहण का समय था सो किया और पुनः मंदिर में मस्तक झुका कर मन में दर्शन के आनंद की अनुभूति लिए घोड़े पर सवार  होकर वापिस रांसी गांव की ओर चल पड़े।  घने जं गलों से होते हुए प्रकृति से साक्षात्कार करते हुए पुनः नानू गांव में कुछदेर रुके फिर आगे बढ़ गए।  सामने दूर बादल घिर रहे थे लगता था बड़ी तेज बरसेंगे और हुआ भी वही अभी थोड़ी दूर ही गए थे और मध्य गंगा और धौली गंगा के संगम पर पहुंचे ही थे कि बहुत तेज बारिश होने लगी आगे चलना मुश्किल था सो  गाँव की एक दुकान पर उतर गए और चाय की चुस्कियां लेते हुए बारिश हलकी होने का इंतजार करने लगे।  एक घंटे तक तेज पानी पड़ता रहा फिर कुछ  हल्की हुई बारिश तो घोड़े वाले चलने की ज़िद  करने लगे वे अँधेरा होने की बात कह रहे थे हमने थोड़ी नानुकड़ करके चलने  का फैसला किया और रेन कोट पहनकर घोड़े पर बैठ गए।  बारिश में ही आगे बढ़ते रहे , चाहे फिसलन भरे पहाड़ी रास्तों पर डर लग रहा था, चश्मा बिलकुल धुंधला हो गया था पर इसका भी अपना मजा था 🙂

बारिश रुकरुक कर हो रही थी पर हम कहाँ रुक रहे थे च बढ़ते ही जा रहे थे आखिर शाम को पांच बजे के बाद हम अपने गंतव्य पर पहुंच गए। पूरे भीगे देखकर अशोक ने एक दम  गर्म चाय पिलवायी और भोजन तैयार करवाया। हमने गीले वस्त्रों से छुटकारा पाकर गर्म कपडे पहने और भोजन पर टूट पड़े।  थकान होने के बाद भी हम प्रकृति को आँखों से दूर नहीं रखना कहते थे सो सभी नीचे आकर टहलने लगे।  काफी देर बाद अपने कमरे में आकर अगले दिन तुंगनाथ की यात्रा का प्लान बनाकर सो गए…

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