अमरनाथ-यात्रा (उधमपुर>अननंतनाग>श्रीनगर)

बीच-बीच में खाने-पीने और अन्य कामों के लिए रुकते-रुकाते गाँवों,क़स्बों और शहरों को पार करते हुए रात्रि में लगभग साढ़े ग्यारह बजे उधमपुर पहुँचे।
बस से उधमपुर की शाम

होटल में कमरे पहले से ही बुक थे। जाकर नहाए और खाना खाकर सो गए। कुछ सदस्य मैच का आनंद लेते रहे, पर सुबह को उन्हें उठाने के लिए अनेक युक्तियाँ काम में लानी पड़ीं।
उधमपुर छोटा सा नगर है। छोटी सड़कें और साधारण जीवन। यहाँ का इस्कोन मंदिर बहुत भव्य है। बिजली-पानी की बहुत क़िल्लत है जैसे आजकल दिल्ली में हो रही है। अगली सुबह दस बजे हम फिर चल पड़े।
उधमपुर से पटनीटोप, कुड, रामबन में पुलिस गाड़ियों को रोक रही थी। लोग शोर मचा रहे थे, हाय-हाय चिल्ला रहे थे। छोटी गाड़ियों को छोड़ा जा रहा था पर बड़ी बस वाले उन्हें जाने नहीं दे रहे थे। हमने फोर्से के आदमी को वायरलैस पर अपने साहब से बात करते खुद सुना- ’सर इन्चार्ज तो आज आए नहीं हैं, हमें कोई इन्सट्रक्शन्स नहीं है प्लीज बताएं क्या करें। यहाँ ट्रैफ़िक जाम हो गया है। लोकल वाहन भी रुके हुए हैं।’ शायद साहब ने जाने का आदेश दे दिया था जो सभी बसें निकल गयीं। रामबन पार करके हम बनिहाल पास पर जवाहर ट्नल में प्रवेश करके कश्मीर में पहुँच गए। साढ़े तीन किलोमीटर लंबी सुरंग में पूरी तरह अंधेरा था, लोग जो पहली बार गए थे कुछ सहम से गए। बस का प्रबंधक पूरे ज़ोर-शोर से ‘बम-बम भोले’ के नारे लगवा रहा था।

टनल पार करते ही मानों हम नए लोक में आगए। धीमी बारिश, ठंडी हवा के साथ-साथ नए रोपे धान के खेत क्या नज़ारे!

काज़ीकुंड पार करते ही अनंतनाग शुरु हो गया। बाहर प्रकृति आवाहन कर रही थी इधर बस वाला शीशे बंद करवा रहा था। हम कोई फोटो न ले सके पर आँखों को पलक तक न झपकने दिया, कहीं कोई दृश्य रह न जाए।
अनंतनाग झेलम के किनारे बसा पुराना शहर है। सघन हरियाली और पहाड़ियाँ जहाँ सुंदर छटा बिखेर रहीं थी वहीं ट्रक भी शहर की खासियत बता रहे थे। बड़ा शहर होने के बावज़ूद चिल्ल-पौं नहीं थी। सभी साइनबॉर्ड उर्दू में थे। आगे चले तो स्त्रियाँ धान के खेतों में ठंडे पानी में काम कर रहीं थीं। बच्चे मस्ती में खेल रहे थे। छोटी लड़कियाँ भी सिर ढ़के हुए थीं। रास्ते में सड़क पर खड़े बच्चे हाथ हिलाकर ’बम-बम बोले’ चिल्लाते। उन्हें पता था यह वाक्य।
सबसे बड़ी बात यह थी कि तेज बारिश के बीच पूरे रास्ते में हर सौ या कुछ कम दूरी पर हमारे जवान पूरी मुस्तैदी से चौकसी कर रहे थे। उन्हें देखकर मन उनके प्रति गहरे सम्मान से भर जाता। बस में बैठे बच्चे उन्हें हाथ हिलाकर अभिवादन करते तो उनके गंभीर चेहरे पर मोहक मुस्कान आ जाती। वे भी हाथ हिलाकर स्वागत करते। सच कहें तो हमें उन युवक सिपाहियों को देखकर कई बार अपनी आँखें बंद करनी पड़ी वरना साथ बैठे लोगों तक हमारे भाव भी छलक जाते। सच्चे सपूत हैं। उनकी कर्तव्य-निष्ठा बस क्या कहें? महसूस ही की जा सकती है। देखकर!उनके सामने हम अपने को कितना छोटा पा रहे थे। न उपर शेड, न कोई कुर्सी, न अन्य कोई साधन बस मुस्तैदी! हमें गर्व है अपने वीर जवानों पर। हमने सच्चे हृदय से उनके दीर्घ-जीवन की कामना की।
आगे बढ़्ते हुए प्रकृति के दृश्यों को लूटते हुए हम अपने को बड़ा धनी समझ रहे थे।
शाम होते-होते हमें डल दिखायी देने लगी। सभी खुशी से चिल्ला उठे- देखो डल लेक!

पर्वतों से घिरी मंद प्रकाश में बादलो के वितान में मानों कोई तपस्वनी शांत ध्यान मग्न हो। इसे देखकर कौन कह सकता है कि यह बहुत कुछ सह चुकी है। पर आज शांत है। हम नज़ारे क़ैद कर रहे थे। कुछ होश न था। अंधेरा होने लगा,बारिश साथ देने लगी, ट्रैफ़िक इस क़दर जाम कि चार घंटे लग गए डल-पार्किंग तक पहुँचने में। सभी ट्यूरिस्ट-वाहन। श्रीनगर में मानों पूरा भारत उमड़ पड़ा हो। कोई डर नहीं सभी प्रसन्न और उमंग से भरे ।
जब पार्किंग में पहुँचे तो वहाँ जे-के पुलिस के एक सरदार जी ट्रैफ़िक को हांक रहे थी। उनके साथ कई अन्य कर्मी थे। ’यहाँ पार्किंग नहीं होगी, सभी नेहरु-पार्किंग की ओर जाएँ।’ आखिर में नेहरु-पार्किंग में गाड़ी पार्क हुयी। उफ़!! यह जाम! इतने ख़ूबसूरत नज़ारों के बीच?
अब बारी थी ठहरने की। इतनी रात में हाउस-बोट? न बाबा न! पुलिस वाले भी मना करने लगे। तभी चौराहे पर राजू-लॉज के मालिक खड़े हमें ताक रहे थे। पास आए और बोले-ठहरना है तो आओ हमारे यहाँ। हमारा ग्रुप उनके पीछे चल दिया। पास ही उनका गेस्ट हाऊस था। बोले सेपरेट रुम चाहिए या बड़ा कमरा? हमसब ने सोचा रात ही तो काटनी है क्यों न बड़ा कमरा लेलें। हम अपने परिवार के लोग एक साथ ठहर गए। थोड़ा मोल-भाव करने पर राजू ने किराया कुछ कम कर दिया। राजू महाशय पक्के व्यापारी थे। बोले – ’अमरनाथबाबा के दर्शन करने जा रहे हो? हम भी बहुत मानते हैं,। हमारा नाम है राजू राठौड़। फिर कुछ बात हुयी तो लपककर अपना आई-कार्ड दिखाने लगे। हमने देखा वहाँ फोटो तो उनका लगा है पर नाम है आशिक ख़ान। कांस्टेबिल इन जे-के पुलिस। हमने उनका कार्ड रख लिया ’सुबह देंगे’ यह कहकर। इतने में ही उनके पिताजी जो बहुत बुजुर्ग थे आ गए- क्या माज़रा है पूछने लगे। साथ ही अपने को रिटायर्ड कमीश्नर ऑफ़ पुलिस बता गए। हमसे पहले उनके बेटे ने उन्हें आश्वस्त करके भेज दिया।
कमरा बहुत शानदार था सभी सुविधाएँ। कोई कमी नहीं। राजू ने बिना क़ीमत चाय पिलायी-’आप हमारे मेहमान हैं।’
हम पास ही बने नाथू-स्वीट्स में खाना खाने गए। क्या बात? एक सौ सत्तर रुपए की जैन थाली। सामग्री इतनी कि हम और हमारी मित्र ने खाना शेयर कर लिया फिर भी ज़्यादा!!!
वापिस आकर सुबह जल्दी उठने के लिए हम मख़मली गद्दे और नर्म कंबल में दुबककर सो गए।
सुबह इतवार था। राजू ने हमारे एक सदस्य से अपना आई-कार्ड माँगा, बोले ड्यूटी जाना है। सदस्य ने पूछा आज इतवार को। राजू हंसने लगा। बोला दे देना भूल न जाना। हमने उसका कार्ड वापिस कर दिया।
हम सब फ्रैश होकर जाने की सोच ही रहे थे तभी राजू और उनके पिताजी आगए। बोले रास्ते अभी बंद है। यात्रा अभी नहीं खुली है। तभी पिता और बेटे एक दूसरे की आलोचना करने लगे। पिता ने कहा-”ये लड़का निकम्मा है। मैंने नौकरी दिलवा दी। मेरे पैसे पर गुलछर्रे मार रहा है। इसे दिल्ली ले जाओ।’ बेटा बाप से भी आगे, बोला, ये सनका गए हैं। हर बात में इंटरफ़ियर करते हैं। ये कमीश्नर से नहीं डी एस पी से रिटायर हुए हैं। हमने उनकी बातों को हंसकर टाल दिया। उनकी मेहमान-नवाज़ी क़ाबिले तारीफ़ थी। हमें उनकी व्यक्तिगत बातों से क्या। हमें तो पवित्र गुफ़ा जाने की जल्दी थी। श्रीनगर घूमने का कार्यक्रम तो वापिसी में था। हम चैक-आउट कर गए।

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5 Responses to “अमरनाथ-यात्रा (उधमपुर>अननंतनाग>श्रीनगर)”

  1. shantilal dundara Says:

    यात्रा संस्मरण और सुंदर वर्णन

  2. raj mali Says:

    बहुत रोचक यात्रा सुंदर वर्णन है

  3. समीर लाल Says:

    बहुत बढ़िया है यात्रा संस्मरण और साथ में तस्वीरें.

  4. परमजीत बाली Says:

    बहुत रोचक यात्रा संस्मरण।चित्र भी बहुत सुन्दर प्रेषित किए हैं।धन्यवाद।

  5. Dr.Manoj Mishra Says:

    वाह बहुत रोचक और सुंदर वर्णन है .

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