न्मय और ममता कई दिन से घर सजा रहे हैं। सजाते भी क्यों न? उनकी बहु की पहली दिवाली थी। बहु-बेटा विदेश में रहते हैं। बेटे ने दिवाली पर आने का वायदा किया है। सो स्वागत की तैयारियाँ चल रही। दो दिन को शादी करने आया था और चला गया। अब त्योहार मनाने आ रहा है।
सब कुछ सबसे बढ़िया जुटाना है। अपनी परवाह करे बिन हैसियत से ज़्यादा खर्च करके स्वागत की सोची है।
बहु बहुत अमीर परिवार की लड़की है। बेटा बहुत बड़े पद पर होने के कारण लड़की वालों ने चिन्मय के घर रिश्तेदारी बनायी है।
शादी होते ही अगले दिन बहु चली गयी ठीक से देखी भी नहीं, कोई बात न चीत। ’अबकी बार तो जी भर के रहसूँगी” ममता मन ही मन सोचती उत्साह से काम करे जा रही थी।
चलने से पहले बेटा ने फॉन करके चिन्मय को बताया कि वह सुबह दो बजे घर पहुँच जाएगा।
चिन्मय के पास तो स्कूटर भी न था तो वे इतनी रात में उसे लेने इतनी दूर हवाई-अड्डा तो क्या जाते। सोचा आ जाएगा टैक्सी करके। अपने घर ही तो आ रहा है और वे दोनों उसके आने के सुखद इंतजार के साथ सो गए। पूरे दिन के थके हारे थे पड़ते ही दोनों को नींद आगयी।
सुबह पाँच बजे चिन्मय की आँख खुली तो एकदम घबराकर ममता को झकझोर कर जगाया और बताया कि अभी तक बच्चे नहीं पहुँचे हैं। ममता ने आलस में ही लेटे-लेटे कहा -’पहुँचते ही होंगे।’ पर चिन्मय तो परेशान था। फोरन बेटे को फॉन लगाया। घंटी बहुत देर तक बजती रही बंद होने के कुछ पहले रिसीवर उठा – हलो! हलो! कौन?
-मैं चिन्मय ! नमस्कार।
– नमस्कार चिन्मयजी।
– बात यह है कि बच्चे अभी तक नहीं पहुँचे हैं, जबकि बेटे ने दो बजे तक पहुँच जाने के लिए कहा था।
-हाँ, वे दोनों सो रहे हैं। मैं उन्हें एयरपोर्ट से ले आया था। मेरी पत्नी ने कहा कि हमारे बेटी-दामाद हमारे साथ पहली दिवाली मनाएँगे। वैसे भी जो सहूलियतें यहाँ हैं वो आपके घर में तो हैं नहीं। वह वहाँ ठीक से रह नहीं पाती।
जब उठेंगे तो अपसे बात कर लेंगे।
हाँ मैं अपने ड्राईवर के हाथ आपके घर दिवाली का गिफ्ट भिजवाऊँगा ले लीजिएगा। ठीक है। हैप्पी दिवाली!
चिन्मय ने रिसीवर रख दिया। और उदास बैठ गया। पत्नी को सारी बात बतायी। वह तो रुआंसी हो गयी। मरे मन से काम करने लगी।
शाम हो गयी बेटे का फॉन भी नहीं आया। चिन्मय ने ट्राई किया तो एन्गेज़ आता रहा। ड्राइवर आकर एक बड़ासा गिफ़्टपैक पकड़ा गया। ममता और चिन्मय ने रात को पूजा करके खाना निगला और बिस्तर पर पड़ गए। बिना बोले चुपचाप। आधी रात को बेटे का फॉन आया। चिन्मय ने उठाने से मना कर दिया, पर ममता ने लपक कर उठाया।
-हैलो! हाँ बेटा बोल!
– माँ दिवाली मुबारक हो। कल सुबह मन्नी (बहु) के पापा हमें यहाँ ले आए। आपको पता तो है कि मन्नी के घर का रहन-सहन कितना अच्छा है। फिर उसके पापा उसको हमारे घर त्योहार पर भेजना नहीं चाहते थे सो हम आ गए।
सुबह देर से उठा और सेलिब्रेशन में बिज़ी हो गया। कल देखता हूँ शाम को मौक़ा लगा तो आऊँगा। वैसे हमारा साउथ घूमने जाने का प्रोग्राम बन रहा है। देर रात की फ़्लाइट है। पिताजी सो रहे हैं? उनको प्रणाम कहना। ठीक है रखता हूँ।
टैग: दिवाली\दीपावली, सेलिब्रेशन
नवम्बर 2, 2008 को 16:32 |
hello dear,
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-Sanjay Nimavat
नवम्बर 2, 2008 को 10:20 |
– संगीताजी बहुत-बहुत धन्यवाद ब्लॉग पर आने के लिए।
-समीर भाई टिप्पणी हेतु धन्यवाद।
– गोविंद गोयल जी नारायण! नारायण!
नवम्बर 2, 2008 को 07:44 |
narayan narayn
नवम्बर 2, 2008 को 06:44 |
बहुत मार्मिक!!
कितने ही बेटे ऐसे नालायक निकल रहे हैं..बहुत दुख होता है!
नवम्बर 1, 2008 को 22:02 |
आज हर घर की यही कहानी हो गयी है। बहुत ही अच्छा लिखा है आपने।