याद आती है…

याद आती है…

हम सभी अपना जीवन सुख से व्यतीत करना चाहते हैं, पर क्या बिना दुखों के सुख पता चलते हैं? क़ुदरत ने इसे अपने हाथ में रखा है। प्रकृति स्वयं कहर बरपा देती है। कभी चक्रवात, कभी सुनामी जैसी आपदाएँ तो कभी भूकंप के झटके!!! हम बेवस हो जाते हैं और आह ही भरते रह जाते हैं। प्राकृतिक-आपदाओं से सृष्टि की जो हानि होती है वह हमें इस नश्वर संसार की नीयत लगती है फिर भी मन नही समझता! मेरे मन में उन स्कूली बच्चों की याद ताज़ा हो जाती है जो २६जनवरी २००१ को भुज में आए भूकंप में राष्ट्रीय-पर्व मनाते हुए राष्ट्र की मिट्टी के गुण-गान गाते हुए उसी में समा गए थे। उस समय मैं ने उनके लिए ये शब्द लिखे थे-

देखा भी ना था कभी जिन्हें,
रोते हैं रह-रह कर अब उन्हे।
आए थे हंसते-मुस्कराते सभी,
समझे भी ना थे कि समां गए ज़मीं में तभी।
एक दम धरा हिल उठी,
चारों ओर से फट पड़ी,
डोल गयी वसुंधरा,
हो गयी कंपित महा।
मकान-दुकान ढह गए,
पेड़-पौधे गिर गए।
समस्त पृथ्वी हौल गयी,
सृष्टि को लील गयी,
और खंडहर में बदल गयी।
परंतु याद उनकी आती है,
बहुत ज़्यादा सताती है,
जो आए थे देश का गुणगान करने,
पता किसको था जा रहे हैं दबने!
सज-धजकर खड़े थे पंक्ति में,
राष्ट्रगान गाने की जल्दी में।
तभी पृथ्वी थर्रायी!
अपने आप गुर्रायी!
झटके से गोद फैलायी!
लगती थी हो जैसे ललचायी!
सभी बच्चे हिल गए,
चीत्कार कर गए।
पर ना था कोई बचानेवाला!
वार कर रहा था ख़ुद बनाने वाला!
देखते ही देखते सब शांत हो गया!
सारा शहर क़ब्रिस्तान हो गया!
!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
मुझे वसुंधरा से है यह शिकायत,
क्या बिगड़ जाता?
जो उन बच्चों पर करती इनायत!
वो तो चले गए सब कुछ छोड़कर,
तेरे पास हमसे नाता तोड़कर!
पर तू भी तो उन्हें देखकर सुख ना पाएगी,
उनकी आत्मा के सवालों से बहुत लजाएगी!
क्यों किया तूने यह अनाचार?
क्या कारण था-
जो थी इतनी लाचार?
या फिर समझ लें यह तेरा अत्याचार?

3 Responses to “याद आती है…”

  1. Manish Says:

    सुंदर भावनात्मक चित्रण था इस त्रासदी का…पर शायद प्रकृति भी जवाब में इंसानों से यही सवाल करे कि

    क्यूँ रौंद रहे तुम मेरी धरा ?
    क्या उसका है बोलो दोष भला ?
    बंद करो उसका दोहन
    संतुलित करो अपना जीवन
    सोचो तुम क्या होगा फिर
    गर फट जाये वो जरा जरा !

  2. Divine India Says:

    अपने नन्हे बच्चे सभी को अच्छे लगते है…
    पर क्या कभी सोचा है उस माँ के लिये
    जो हमारे जीवन के लिये उत्तरदायी है…
    किन अंगों को मानव ने नहीं चीरा नहीं फाड़ा
    की आज सारा का सारा मानवों से इतर जगत
    अपने जीवन की रक्षा के लिये त्राहिमाम कर रहा है.
    मैं यह नही कहता…बहुत उम्दा सोंच और करुणा
    का चित्रण किया जो काबिल ए तारिफ है।

  3. Udan Tashtari Says:

    मार्मिक चित्रण. फिर से याद ताजा हो आई – दिल भर आया..

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