क्रोध
मनुष्य का शत्रु क्रोध है,
जो जीवन की गाड़ी का अवरोध है,
उत्तेजित करता मन का क्षोभ है।
कुण्ठा में जन्म लेता है,
सारी सरसता छीन लेता है।
जब भी क्रोध आता है,
तो गर्मी फैलाता है,
सारी मोहकता ले जाता है।
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सहनशीलता
सहनशीलता एक गहना है,
जो बड़ा मँहगा है,
बहुमूल्य और दुर्लभ है,
आजकल तो बनावटी ही ज़्यादा सुलभ है।
खोज जारी है,
पर मिलना बहुत भारी है।
जुलाई 11, 2006 को 07:36 |
सही लिखा। तितिक्षा के बारे में बहुत कुछ कह गए हैं आदि शंकराचार्य।
जुलाई 11, 2006 को 01:07 |
अच्छा लिखा, धन्यवाद।
जुलाई 10, 2006 को 19:00 |
मनीषजी बच तो नहीं सकते-बिल्कुल सही, पर सब मिलकर कँजूसी कर सकते हैं।
जुलाई 10, 2006 को 16:35 |
मनुष्य का शत्रु क्रोध है,
जो जीवन की गाड़ी का अवरोध है,
उत्तेजित करता मन का क्षोभ है।
कुण्ठा में जन्म लेता है,
सारी सरसता छीन लेता है।
पर क्या करें जानते हुये भी इससे बच कहाँ पाते हैं।
जुलाई 10, 2006 को 05:36 |
सत्यवचन!
जुलाई 9, 2006 को 20:39 |
बहुत सही लिखा आपने