क्रोध और सहनशीलता

क्रोध
मनुष्य का शत्रु क्रोध है,
जो जीवन की गाड़ी का अवरोध है,
उत्तेजित करता मन का क्षोभ है।
कुण्ठा में जन्म लेता है,
सारी सरसता छीन लेता है।
जब भी क्रोध आता है,
तो गर्मी फैलाता है,
सारी मोहकता ले जाता है।
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सहनशीलता
सहनशीलता एक गहना है,
जो बड़ा मँहगा है,
बहुमूल्य और दुर्लभ है,
आजकल तो बनावटी ही ज़्यादा सुलभ है।
खोज जारी है,
पर मिलना बहुत भारी है।

6 Responses to “क्रोध और सहनशीलता”

  1. jai hanuman Says:

    सही लिखा। तितिक्षा के बारे में बहुत कुछ कह गए हैं आदि शंकराचार्य।

  2. ई-छाया Says:

    अच्छा लिखा, धन्यवाद।

  3. MAN KI BAAT Says:

    मनीषजी बच तो नहीं सकते-बिल्कुल सही, पर सब मिलकर कँजूसी कर सकते हैं।

  4. Manish Says:

    मनुष्य का शत्रु क्रोध है,
    जो जीवन की गाड़ी का अवरोध है,
    उत्तेजित करता मन का क्षोभ है।
    कुण्ठा में जन्म लेता है,
    सारी सरसता छीन लेता है।

    पर क्या करें जानते हुये भी इससे बच कहाँ पाते हैं।

  5. अनूप शुक्ला Says:

    सत्यवचन!

  6. SHUAIB Says:

    बहुत सही लिखा आपने

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