महान बनाता है शिखर

जंगलों के बीच सजे से तुम,
गगन को छूते से लगे तुम,
चंद्रमा लगा तुम्हारे पास,
तारे देते थे नज़दीकी का आभास,
तुम ऎसे अडिग खड़े,
जैसे कई दिग्गज अड़े,
बादल गोदी में खेलते हैं,
लगता है तुम्हें छेड़ते हैं,
धूप का था रंग चढ़ा,
पेड़ों ने किया तुम्हें हरा,
विशाल हृदय का रुप हो,
दॄढ़-शक्ति का स्वरुप हो,
लगता है हो अटल विश्वास,
संतोष का पूर्ण अहसास,
ऊंचाई बताती है बड़प्पन,
ढ़लान दिखाता है लड़कपन,
महान बनाता है शिखर,
देखकर होता है मन मुखर!
अपनेआप होकर ऊंचे,
करते हो मस्तक ऊंचा उनका
जो खड़े देखते हैं तुम्हें नीचे।

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4 Responses to “महान बनाता है शिखर”

  1. कुछ इधर-उधर की… « पसंद Says:

    […] पर देखा जाता है कि छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी समस्या इन लघुओं के दरकिनार करने […]

  2. MAN KI BAAT Says:

    धंयवाद प्रतीक जी और समीर जी।
    प्रेमलता

  3. Pratik Says:

    हिन्दी ब्लॉग जगत् में आपका हार्दिक स्वागत् है। आशा है आपकी कविताएँ निरन्तर पढ़ने को मिलती रहेंगी।

  4. Udan Tashtari Says:

    इतनी सुंदर रचना के साथ आपके ब्लाग जगत मे आगमन पर स्वागत है.
    पहली टिप्पणी करने का सौभाग्य मै ही ले लेता हूँ.
    समीर लाल

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